कर्ज की विरासत…आंकड़ों की सियासत! बढ़ता कर्ज के भार को लेकर पक्ष और विपक्ष में वार-पलटवार

छत्तीसगढ़ में आर्थिक विकास बनाम भारी भरकम कर्ज के मुद्दे पर इन दिनों राजनीति तेज है। सरकार पिछले तीन सालों के कार्यकाल को एक उपलब्धि की तौर पर पेश कर रही है, जबकि बीजेपी भारी भरकम कर्ज के आंकड़ों पर सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है। बीते तीन सालों में छत्तीसगढ़ में कई बेहतर काम हुए हैं। सरकार बनते ही किसानों के 12 हजार करोड़ रुपए के कर्ज माफ किए गए। धान खरीदी के अलावा राजीव गांधी न्याय योजना के तहत किसानों की जेब में अतिरिक्त 16 हजार करोड़ रुपए पहुंचाए गए। गोधन और भूमिहीन न्याय योजना के तहत गरीब, भूमिहीनों को 100 करोड़ रुपए दिए गए। अलग-अलग सब्सिडी योजना के तहत प्रदेश की जनता को 15 हजार करोड़ रुपए दिए गए।

5 लाख लोगो को नौकरी मिली, और लाखों अन्य लोगों को रोजगार के मौके मिले। ब्लॉक स्तर से लेकर आदिवासी अंचलों में फूड प्रोसेसिंग यूनिट के जरिए आय बढ़ाने की कोशिश की गई। लोगों की जेब में पैसे आए तो बाजार भी उछला। यही वजह थी कि कोरोना काल में, जब देश और दूसरे राज्यों की आर्थिक स्थिति चरमरा रही थी, छत्तीसगढ़ की स्थिति बेहतर थी। मंदी की स्थिति नहीं बनी और बेरोजगारी का आंकड़ा भी गिरकर 3 फीसदी के आसपास रह गया। लेकिन इन तमाम उपलब्धियों के बीच एक सच्चाई ये भी है कि राज्य पर कर्ज का बोझ बहुत बढ़ गया है। कुल कर्ज का आंकड़ा 92 हजार करोड़ रुपए को पार कर चुका है। बीजेपी इसे प्रदेश की बदहाल आर्थिक स्थिति का नमूना बता रही है।

बीजेपी के आरोपों से उलट कांग्रेस भारी कर्ज के लिए उसे ही दोषी ठहरा रही है। कांग्रेस का दावा है कि 2003 में जब बीजेपी की सरकार बनी तो उसे करीब 7 हजार करोड़ का सरप्लस खजाना दिया गया था। लेकिन 15 सालों में इसे नेगेटिव कर राज्य पर 45 हजार करोड़ का कर्ज लाद दिया दिया। पिछले साल विधानसभा में दी गई जानकारी के मुताबिक अगस्त 2018 से लेकर नवंबर 2021 तक राज्य सरकार ने 51,335 करोड़, यानि हर साल 17,111 करोड़ का कर्ज लिया है। बीजेपी काल में ये आंकड़ा 2,800 करोड़ का था। हालांकि कांग्रेस का कहना है कि राज्य के हिस्से के 32 हजार करोड़ रुपए तो केंद्र के पास पड़े हैं और उन्होंने बेहतर काम नहीं किया होता तो बीजेपी काल में 21 फीसदी की बेरोजगारी का आंकड़ा आज 3 फीसदी के करीब नहीं आता।

छत्तीसगढ़ की ढाई करोड़ की आबादी के हिसाब से आज यहां के हर नागरिक 36,800 रुपए का कर्ज हो चुका है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर ये आंकड़ा 32 हजार रुपये का है। जबकि 8 साल पहले आज ही के दिन छत्तीसगढ़ को देश में सबसे बेहतर वित्तीय प्रबंधन का केंद्रीय अवार्ड मिला था।

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